स्वानसी: मौन की यात्रा करता एक शहर !

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लंदन से जब मैं बस में बैठा तो मुझे पता नहीं था कि मैं जिस रास्ते पर जा रहा हूँ वह रास्ता मुझे प्रकृति के बीच बसी एक अनजान और ऐतिहासिक दुनिया की ओर ले जा रहा है जहाँ एक अतीत बरसों से छुपा हुआ था। ब्रिस्टल होते हुए जब हमारी बस कार्डिफ़ पहुँची तो वहाँ की मुख्य सड़क पर से जो विशाल पुरानी इमारतें दिखाई दे रही थीं , वे मुझे आकर्षित करने के साथ-साथ अचंभित भी कर रही थीं। इन विशाल ऐतिहासिक इमारतों के बारे में सोच ही रहा था कि अचानक खिड़की की तरफ़ ध्यान गया तो मैंने पाया कि बस सड़कों पर दौड़ती हुई एक बार फिर प्रकृति के आगोश में आ चुकी है। और सड़क के दूसरी ओर विशाल समुद्र भी अब दिखाई दे रहा था। समुद्र के किनारे चलते हुए जब आप अपने आप से मिलते हैं तो पाते हैं कि ज़िंदगी रात और जज़्बात में सिमट गई है। एक तरफ़ लहरों का उठता शोर आपको अपने मन के आवेग के साथ बहा ले जाने को आतुर तो दूसरी तरफ़ आसमान में ठहरा हुआ चाँद आपको अपने साथ बात करने के लिए उत्साहित करता है। जी हाँ , इस बार नियति मुझे लेकर पहुँची यूनाइटेड किंगडम के एक शहर, स्वानसी।  यहाँ की प्राचीन भाषा में स्वानसी शब्द का अर्थ है ‘नदी का मुँह’। यह शहर तावे

व्यर्थ की नए अर्थों में तलाश...


आकाश अपने फैले खुले दो हाथ के साथ पुकार रहा था और ठंडी हवा बारिश के साथ पुकार रही थी मानों कह रही हो चलो तुम्हें ले चलूँ अपने साथ उस एकांत में जहाँ कभी बुद्धिस्ट अपना ज्ञानार्जन करते थे। शहरों और शोर से दूर हरियाली के बीच एकांत में। हाँ,इसी एकांत को तो खोज रहे थे वे लोग जो मनुष्य को पूर्णता की ओर ले जाते है।   


       
जिंदगी की इस भाग दौड़ ,नौकरी की परेशानी, कमाते रहने और पेट पालने की चिंता के बीच इस तरह का एकांत मन को एक सुकून देता है। अपने आप को समझने और खुले तौर पर सोचने की आज़ादी भी। परन्तु हम कहाँ कर पाते हैं ये सब। सिर्फ़ सोचना भर तो कतई पर्याप्त नहीं होता। अपने इस सोचे हुए को रचा जाना भी एक कला है। और शायद इसलिए ये एक कठिन काम है। उस सोचे हुए को रच कर अपनी दुनिया बनाना वाकई असंभव नहीं तो कठिन (दुःसाध्य) काम है। जब आप अपने सोचे हुए और रचे हुए को तोड़ पाने का साहसिक कार्य करते है तब आप कुछ नया रच पाते है। 

 


         वक़्त शायद धीरे-धीरे उसी और बढ़ा जा रहा है ,जहाँ शायद कुछ नया रचा जाना बेहद ज़रूरी है। ज़िंदगी में कुछ नया अपने द्वारा रचा जाना बेहद ख़ुशी और आत्मसंतोष देता है ,परन्तु इस नयी रची हुई दुनिया को बनाने में बहुत जद्दोजहद है। और इन्हीं सब जद्दोजहद के साथ प्रकृति के सानिध्य में बना अजंता और एलोरा। कमाल की कारीगरी। और इन सबसे बढ़कर एकांत। गज़ब की बात है कि ये सब गुफाएँ (केव्स ) इतने वर्षो तक छुपी रही या यूँ कहे कि इतिहास ने अपने आप को छुपाये रखा। और इतिहास आज मुझे अपनी उँगलियाँ पकड़ कर ले जा रहा था उस पुरानी दुनियाँ में जहाँ कभी संस्कृति और शिक्षा का वर्चस्व रहा था। अजंता की गुफाओं में कमाल की कारीगरी देखने को मिलती है। ये कारीगरी (कलाकृतिउस समय की है जब इतने तमाम तरह के संसाधन मौजूद नहीं थे। घने जंगलों के बीच ,नदी के किनारे पहाड़ों को काटकर बनायी गयी गुफ़ाएँ ,जो सिर्फ विद्यार्थियों के ज्ञानार्जन के लिए थी। वाकई इतनी कुशल कारीगरी देखना अद्भुत था। औरंगाबाद से कुछ दुरी पर अजिंठा नामक गांव है जहाँ से ४ किलोमीटर दुरी पर है अजिंठा या अजंता की गुफाएँ। शिलाखंडों को काटकर बनायीं गई ३० गुफाएँ, वाघोरा नदी के सुन्दर और मनोरम अश्व नाल आकार के दर्रे में स्थित है। कुल मिलाकर उस समय की श्रेष्ठ जगहों में से एक।  

              इन गुफाएँ को देखना मानो फोटो एल्बम देख रहे हो। स्टिल फोटोग्राफी। पेज दर पेज पलटते हुए एक के बाद एक कई सारे आसनों (मुद्राओं ) में बुद्ध। जिस तरह से एल्बम का हर एक फोटो अपनी कहानी कहता हुआ आपको अपनी यादों में साथ ले जाता है ,ठीक वैसी ही बुद्ध की हर एक मूर्ति आपको उस पुराने इतिहास में ले जाती है जहाँ बुद्ध-भिक्षु शिक्षा का ज्ञानार्जन करते हुए अपने आप को समृद्ध करते थे। इन गुफाएँ की हर एक मूर्ति , सिर्फ मूर्ति ना होकर एक इतिहास है जो अपनी शिक्षा और उस दौर के समृद्धि का वर्णन करती हुई दिखती है। जरुरत है तो सिर्फ उसे महसूस कर अपनाने की। 

                       हर मंदिर के अंदर एक बहुत बड़ी खाली जगह है ,जैसे मन में होती है। खाली जगह......। बुद्ध की ये मूर्तियां अपनी तरफ से कुछ नहीं बोलती। वे तो आपको अपना ख़ाका और दृष्टिकोण तैयार करने के लिए स्वतंत्र छोड़ देती है। मन के इन खाली स्थानों को भरना आपका काम है। 

             ये मंदिर अर्थ की संभावनाओं को बंद नहीं करते है बल्कि उन्हें खुला छोड़ देते है। आपको अपने दृष्टिकोण और विचारों को क्रियान्वित कर उन अर्थों को उस खाली जगह में भरने के लिए जो आपके अपने मन में है । मन के अंदर लगातार चल रही पंक्तियाँ "बुद्धम शरणं गच्छामि ......... " सामने बैठे हुए बुद्ध एक शांत ,स्थिर चित्त और हल्की सी मुस्कान के साथ ,योग की उच्च अवस्था को प्राप्त। आप उस मन की खाली जगह के लिए अर्थ लगाइए। सबके अपने अर्थ होंगे। 


"अर्थ की हर तलाश ,हर युग में अंततः ,एक 'व्यर्थ' है। इस धरती पर जितने भी बुद्ध ,मसीहा,और पैगम्बर आये इस 'व्यर्थ ' को कुछ नए शब्दों में अभिव्यक्त कर गए (गीत चतुर्वेदी )." और इस 'व्यर्थ' की अभिव्यक्ति ही ,इतिहास को आज भी जीवित किये हुए है। और मैं एकांत के इस इतिहास को लांघते हुए प्रवेश करता हूँ आध्यात्मिक युग में जहाँ बुद्ध के इस नए "व्यर्थ " को समझ कर अपना सकूँ। 

 

-श्रीकांत

आलेख किस्सा कोताह के अप्रैल-जून 18 के अंक में प्रकाशित।


Comments

  1. अजंता के मेरे अनुभव काफी पुराने है, पर इन पंक्तियों को पढ़ कर जैसे आज मै उन्ही गुफाओं में सपनिली आंखे लिए से फिर से विचरण करने लगा।
    असली कलाकार वहीं है जो अपनी कलाकृति से पाठक को उसकी दुनिया से खीच कर ख्वाबों और भावो के तल पर ले आए। कुछ पल के लिए ही सही पर आपकी लेखनी ने एक साधारण दिन में कुछ असाधारण भावो को जीवित कर दिया।

    धन्यवाद

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    1. अभय जी,
      धन्यवाद आपका ब्लॉग पर आने और लेखन की सराहना करने के लिए, अभी तो यह शुरूआती चरण में है.आप लोगों का सहयोग बना रहा और सुझाव मिलते रहे तो इसे संवृद्ध करने का प्रयास करूँगा।
      आपको ब्लॊग पसंद आया, उसके लिए धन्यवाद 🙏

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  2. बहुत बढ़िया लिखा है। किस्सा कोताह में भी पढ़ा था। बधाई। लिखते रहिए...

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद अंकल 🙏

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  3. बहुत बढ़िया लिखा है। किस्सा कोताह में भी पढ़ा था। बधाई। लिखते रहिए...

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  4. बहुत बढ़िया लिखा है। किस्सा कोताह में भी पढ़ा था। बधाई। लिखते रहिए...

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  5. बहुत अच्छा और सराहनीय लेखन, विचारों के अंतर्द्वंद्व का सजीव चित्रण, बहुत शुभकामनाएं

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    1. आपको लेखन अच्छा लगा इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देव निरंजन जी।🙏

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